चीन-भारत-ताइवान: एशिया की नई जंग का बिगुल?



ताइवान पर भारत का रुख स्पष्ट – कोई बदलाव नहीं

एशिया की सियासत इन दिनों तेजी से बदल रही है। चीन और ताइवान के बीच तनावपूर्ण हालातों के बीच यह सवाल बार-बार उठ रहा था कि भारत का रुख ताइवान को लेकर क्या है? हाल ही में चीन की मीडिया में यह ख़बर आई कि नई दिल्ली ने ताइवान को लेकर अपना रुख दोहराया है। लेकिन अब भारत की ओर से साफ कर दिया गया है कि ताइवान के मुद्दे पर भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है।


विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और चीनी समकक्ष वांग यी के बीच हुई मुलाकात के बाद यह स्पष्टिकरण सामने आया। चीन की मीडिया में दावा किया गया था कि भारत ने ताइवान को चीन का हिस्सा माना है। इस पर भारत ने दो टूक कहा कि भारत का आधिकारिक रुख वही है, जो पहले से चला आ रहा है।

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भारत-ताइवान के रिश्ते – राजनीति से ज़्यादा साझेदारी

ताइवान और भारत के बीच संबंध मुख्य रूप से आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक स्तर पर आधारित हैं। 1995 में भारत ने ताइपेई (Taipei) में इंडिया-ताइवान एसोसिएशन (India Taipei Association - ITA) की स्थापना की थी। इसी संस्था के माध्यम से दोनों देशों के बीच व्यापार, शिक्षा, विज्ञान, टेक्नोलॉजी और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा दिया जाता है।

👉 आर्थिक संबंध: भारत और ताइवान के बीच अरबों डॉलर का व्यापार होता है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और सूचना तकनीक के क्षेत्र में ताइवान की कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं।

👉  तकनीकी साझेदारी: सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक चिप निर्माण में ताइवान दुनिया का नेता है। भारत इस क्षेत्र में ताइवान के अनुभव से लाभ उठाना चाहता है।

 👉 सांस्कृतिक जुड़ाव: शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं। ताइवान की भाषा और संस्कृति में भारतीय छात्रों की रुचि लगातार बढ़ रही है

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भारत का संतुलित रवैया

भारत अच्छी तरह जानता है कि चीन और ताइवान के बीच तनाव कितना संवेदनशील मुद्दा है। इसलिए भारत हमेशा से "वन चाइना पॉलिसी" (One China Policy) पर आधिकारिक रूप से चुप्पी साधे रहता है और सीधे तौर पर इस पर बयान देने से बचता है। लेकिन साथ ही भारत ताइवान के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्ते लगातार मज़बूत करता जा रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की यही "संतुलित नीति" उसे एशिया की राजनीति में मजबूती देती है। एक ओर चीन से सीमा विवाद और कूटनीतिक चुनौतियां हैं, वहीं दूसरी ओर ताइवान जैसे टेक्नोलॉजी हब से सहयोग भारत के विकास के लिए ज़रूरी है।

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