"उत्तर प्रदेश में बाढ़ का कहर: जनजीवन अस्त-व्यस्त, हालात गंभीर"आक्रोश ला रोश
उत्तर प्रदेश में बाढ़ का कहर – जनजीवन अस्त-व्यस्त
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उत्तर प्रदेश इन दिनों भयंकर बाढ़ की चपेट में है। भारी बारिश और नदियों के उफान ने राज्य के कई जिलों में तबाही मचा दी है। गंगा, यमुना, घाघरा और शारदा जैसी नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। निचले इलाकों में पानी भर जाने से हजारों परिवारों को अपना घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ रहा है। गाँव के गाँव जलमग्न हो गए हैं, खेत खलिहान पानी में डूब गए हैं, जिससे किसानों की मेहनत पर पानी फिर गया है।
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बाढ़ के कारण सड़कों का संपर्क टूट गया है। कई स्थानों पर पुल और सड़कें क्षतिग्रस्त हो गई हैं, जिससे राहत कार्यों में मुश्किलें आ रही हैं। स्कूल और सरकारी दफ्तर बंद करने पड़े हैं। ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी और खाने की भारी किल्लत हो गई है। लोग नावों और अस्थायी बेड़ों के सहारे सुरक्षित स्थानों तक पहुंच रहे हैं।
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प्रशासन और एनडीआरएफ की टीमें राहत और बचाव कार्य में जुटी हुई हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों में फंसे लोगों को निकालकर राहत शिविरों में पहुंचाया जा रहा है। इन शिविरों में भोजन, पानी और दवाइयों की व्यवस्था की गई है, लेकिन पीड़ितों की संख्या इतनी अधिक है कि यह सुविधाएं भी कम पड़ रही हैं।
बाढ़ ने सिर्फ लोगों के घर और खेत नहीं डुबोए, बल्कि उनके रोज़गार और भविष्य को भी गहरी चोट पहुंचाई है। पशुधन का भारी नुकसान हुआ है। मवेशियों के चारे और आश्रय की भी कमी हो गई है। स्वास्थ्य विभाग ने चेतावनी दी है कि गंदे पानी और गीले माहौल में बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ गया है।
मौसम विभाग के अनुसार, अगले कुछ दिनों तक बारिश का सिलसिला जारी रह सकता है, जिससे हालात और बिगड़ने की आशंका है। सरकार ने सभी संबंधित विभागों को सतर्क रहने और प्रभावित जिलों में लगातार निगरानी रखने के निर्देश दिए हैं।
ऐसी आपदा में सबसे बड़ी चुनौती है – लोगों को सुरक्षित रखना, उनके लिए पर्याप्त भोजन-पानी की व्यवस्था करना और उनके जीवन को फिर से पटरी पर लाना। बाढ़ प्रभावित लोगों की पीड़ा को कम करने के लिए समाज के सभी वर्गों को आगे आकर मदद का हाथ बढ़ाना होगा।
यह बाढ़ केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानवता की परीक्षा है। जरूरत है एकजुट होकर इस संकट से उबरने की, ताकि उत्तर प्रदेश फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट सके।
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